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विक्रमशिला एक्सप्रेस पटना जंक्शन के आउटर सिग्नल पर खड़ी थी। हाथ में अखबार आया तो पहली हेडिंग थी भ्रष्टाचारियों पर शिकंजा…। बिहार विशेष न्यायालय विधेयक मंजूर, नहीं बचेगी भ्रष्टाचार की कमाई, जब्त कर लेगी सरकार। खबर के अंदर गया तो पता चला कि केंद्र सरकार ने उस बहुप्रतीक्षित विधेयक को मंजूरी दे दी जिसके बिना नीतीश सरकार भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से लड़ने में अपने को असहाय पा रही थी। बधाई हो नीतीश जी, चुनावी साल की उपलब्धि। हो सकता है कि कमाऊ सीटों पर बैठे अफसर व बड़े बाबू नाराज हों लेकिन उम्मीद की जा सकती है कि पीड़ित जनता को जरूर राहत मिलेगी।
बताने की जरूरत नहीं कि बिहार के विकास में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी बाधा है। कृषि के लिहाज से संपन्न और खनिज संपदा से भरेपूरे इस राज्य में कायदे से गरीबी या बेकारी होनी ही नहीं चाहिए थी लेकिन नसीब खोटा हो तो क्या। गरीबी और बेकारी दोनों बिहार की पहचान से जुड़ गई हैं। मुंबई तो कभी आसाम या फिर कनार्टक से बिहार के परीक्षार्थी मार कूट कर खदेड़े जा रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चांद पर भी वेकेंसी निकलेगी तो बिहार के लोग अर्जी जरूर डालेंगे। पता नहीं यह बात उन्होंने हेंकड़ी में कही या फिर बिहारियों के सम्मान में लेकिन इसमे सच्चाई है कि नौकरी की तलाश में इस गरीब राज्य के लोग देश के कोने-कोने में न केवल फैले हैं बल्कि जहां भी हैं वहां के विकास में भरपूर योगदान दे रहे हैं।
स्पेशल कोर्ट विधेयक को केंद्र से हरी झंडी मिलने के बाद भ्रष्ट अफसरों पर कितना नकेल कस पाएगा यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन क्या इससे राजनीतिक भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लग पाएगा ? कानून बनाते समय नेताओं को क्यों बख्शा गया? भ्रष्ट आचरण से राजनीति और राजनेता अगर दूर रहें तो अफसर क्या खाकर बेइमानी करेंगे? नए विधेयक के बाद सरकार बेइमान अफसरों को विशेष न्यायालय में खड़ा कर सजा दिला सकती है, उनकी काली कमाई जब्त कर सकती है। यह प्रसन्नता की बात है लेकिन क्या साधु स्वभाव नेताओं पर इस कानून का असर पड़ेगा। क्या उनकी भी काली कमाई जब्त हो सकेगी? सवाल अनुत्तरित है लेकिन मौजू भी। उदाहरण चारा घोटाला है, सजा भी हो रही है तो छोटे-छोटों को ही। केस चलते १३-१४ साल बीत गए, सीबीआई जैसी एजेंसी हजार करोड़ के इस घोटाले में सौ-पचास करोड़ भी बरामद या जब्त नहीं कर सकी।
२००५ में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार भ्रष्टाचार में टाप पर था। दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत सभी छोटे-बड़े राज्य इसके पीछे थे। ईमानदारी में केरल का नाम ऊपर था। एक मोटा आकलन था कि देश में सालाना २१ हजार करोड़ रुपए घूस में लिए-दिए जाते हैं। यह आकलन, पुलिस, न्यायपालिका, भू-प्रबंधन, बिजली, नगर निगम- नगर पालिका, स्कूल अस्पताल, ग्रामीण विकास जैसे विभागों पर किया गया था। सबमें पुलिस अव्वल थी। नीतीश सरकार खुश हो सकती है कि यह लालू-राबड़ी राज का दौर था। बात ठीक, १६ साल से अधिक राज करने वाले लालू प्रसाद यादव को भले आज महंगाई से पीड़ित जनता की याद आ रही हो और या फिर राज्य के विकास की चिंता हो रही हो, सत्ता में रहते उनको कभी ये चीजें याद नहीं आईं। अब पश्चाताप करना चाहते हैं कि जातिगत भेदभाव का कलंक उनके माथे पर लगा है। उस समय की कानून व्यवस्था याद करके आज भी लोगों की रूह कांप जाती है। रंगदारी ने उसी दौर में संस्थागत रूप लिया। सड़कों के लिए खजाने से तब भी बजट जारी होते थे, बस सड़क बनती नहीं थी बिल पास हो जाता था। पता नहीं इसमे कितनी सच्चाई है लेकिन सत्ता के गलियारे में मजाक मशहूर था कि किसी जनसभा में एक बार लालू प्रसाद से लोगों ने सड़क की मांग उठाई तो जवाब सुनने को मिला कि अगर सड़क बनी तो गांव में पुलिस की जीप आ जाएगी, फिर ताड़ी कैसे बेचोगे? खैस उस जमाने में मंत्रियों के आवास के पीछे ताड़ी बिकते और लोगों को पीते देखा है। शायद लालू को आभास नहीं था कि कभी उनका सूरज अस्त होगा।
बिहार पहला राज्य है जहां भ्रष्टाचार से अर्जित संपत्ति जब्त करने का कानूनी आधिकार सरकार को मिला है। पहले भ्रष्ट अफसर (आईएएस-आईपीएस) पर केस चलाने के लिए सरकार को केंद्र का मुंह देखना पड़ता था। अब सरकार स्पेशल कोर्ट बनाकर स्पीडी ट्रायल कर सकेगी। हम उस दिन का बेसब्री से इंतजार करेंगे जब नेताओं की काली कमाई जब्त करने के लिए राज्य या केंद्र सरकार कोई कानून बनाएगी।
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