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बोलें तो बहन जी, दाग अच्छे हैं

आउटर सिग्नल
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२००७ के यूपी विधान सभा चुनाव में तत्कालीन मुलायम सरकार के पक्ष में अमिताभ बच्चन का एक नारा यूपी में है दम क्योंकि अपराध यहां है कम माखौल का विषय बना था, इस समय भी हालात कुछ-कुछ उसी से मेल खा रहे हैं। मुख्यमंत्री मायावती प्रदेश में अपराधमुक्त, अन्यायमुक्त, भयमुक्त और भ्रष्टाचारमुक्त वातावरण बनाने का दावा कर रही हैं लेकिन उनकी सरकार बाहुबली विधायक डीपी यादव को नीतीश कटारा हत्याकांड में न केवल क्लीन चिट दे रही बल्कि सज्जन और भद्र पुरुष बता रही है। कौन पूछेगा जिस पुलिस ने पहले डीपी के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया, वही बसपा में शामिल होते ही उसे सज्जन और भद्र पुरुष कैसे बताने लगी? क्या सत्ता इसी तरह के चमत्कार दिखाती है? अच्छा हुआ कोर्ट ने सरकार की सज्जन बताने वाली अर्जी नामंजूर कर दी।
मायावती के हालिया अपराध विरोधी मुहिम को देखें तो सबसे पहले नजर जाती है पूर्वांचल के माफिया मुख्तार अंसारी और उसके भाई अफजाल अंसारी पर। पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा ने मुख्तार और अफजाल को ससम्मान बनारस और गाजीपुर से टिकट दिया था। बनारस की एक सभा में बहन जी ने मुख्तार को गरीबों का मसीहा बताकर वोट मांगे थे। मुख्तार और अफजाल दोनों को जनता ने नकार दिया। मुख्तार मऊ से निर्दल विधायक है और उस पर बहुचर्चित भाजपा विधायक कृषणानंद राय की हत्या का आरोप है। बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित नहीं समझ पा रहे कि बहन मायावती ने मुख्तार को पार्टी में शामिल क्यों किया और शामिल ही किया तो फिर निकाला क्यों? मुख्तार के काले-सफेद कारोबार और ठिकानों पर पुलिस ने छापेमारी करके जैसे मुनादी कर दी कि अब वह इस माफिया को संरक्षण नहीं दे रही। मुख्तार को बसपा से निकलवाने में उसके प्रतिद्वंद्वी माफिया डान बृजेश सिंह का तो हाथ नहीं? क्योंकि बृजेश भी गिरफ्तारी के बाद से राजनीतिक ठौर की तलाश में है। वैसे यह परिवार बसपा के काफी निकट पाया जा रहा है। बृजेश का भतीजा सुशील सिंह बसपा का सम्मानित विधायक है और पुलिस उसके नाम का माला फेरती है। राजनीति का रंग देखें, यह वही बृजेश है जिसपर खुला आरोप था कि बसपा सुप्रीमो की हत्या की साजिश रच रहा है, आज उसकी पत्नी भी बसपा की सेवा में संलग्न है।
अंसारी बंधुओं के निष्कासन के बाद घोषित रूप से यही सामने आया कि बसपा शासन में अब अपराधियों के लिए जगह नहीं। मुख्यमंत्री ने कोआर्डिनेटरों से ३० अप्रैल तक पार्टी में घुस आए (बकौल बहन जी, सपा ने अपने सारे अपराधी बसपा में भेजे थे) गुंडों – बदमाशों की सूची मांगी तो विश्वास हो चला कि बसपा वाकई अपराधी चरित्र वालों से मुक्ति चाहती है लेकिन जिन ५०० लोगों को पार्टी से निकालने की घोषणा हुई, आज तक उनके नाम उजागर नहीं हुए। कुछ दागी विधायकों – मंत्रियों के नाम चर्चा में आए तो पार्टी की तरफ से खंडन कर दिया गया। इंजीनियर मनोज गुप्ता हत्याकांड में जेल काट रहे औरैया के विधायक शेखर तिवारी, जौनपुर के धनंजय सिंह, मधुमिता हत्याकांड के सजायाफ्ता अमरमणि त्रिपाठी, जेल के बजाय अस्पताल में भर्ती जमुना निषाद, शशिबाला कांड में जेल गए आनंद सेन, हाल में जमानत पर छूटे गुड्डू पंडित के नाम भी संभवतया उस सूची में नहीं हैं। चूंकि डीपी यादव को सरकारी तौर पर भद्र पुरुष साबित किया जा रहा लिहाजा उनका नाम दागियों की सूची में होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। बादशाह सिंह और अवधपाल यादव सरीखे मंत्रिपरिषद की शोभा बढ़ा रहे हैं। दद्दू प्रसाद भी मंत्री हैं और धड़ल्ले से काम कर रहे हैं, कभी ददुआ के शुभचिंतक राजनेताओं में उनका नाम लिया जाता था। धर्मराज निषाद पर भी केस हैं लेकिन मंत्री हैं। अरुण शंकर शुक्ला उर्फ अन्ना को सिर्फ इसलिए पार्टी से निकाल दिया गया क्योंकि वह उन्नाव की लोकसभा सीट बसपा के लिए जीत नहीं सका था।
बहुमत की सरकार के तीन साल पूरे करने पर मुख्यमंत्री मायावती ने ढेरों उपलब्धियां गिनाईं, साथ ही अपेक्षित विकास न होने के लिए केंद्र को कसूरवार ठहराया। राजनीति यही कहती है कि उपलब्धियां अपने खाते में और कमियां दूसरे के। पहली ५०० की सूची पर सस्पेंस के बावजूद मीडिया में उम्मीद थी सालगिरह के शुभ अवसर पर भी मुख्यमंत्री सफाई अभियान जारी रखेंगी और दागियों की नई लिस्ट जारी होगी लेकिन येसा कुछ नहीं हुआ। विपक्ष का आरोप अगर सही है तो बसपा में ६८ विधायक दागी हैं और इनपर हाथ डाला गया तो सरकार ही अल्पमत में आ जाएगी।
वैसे माना यही जा रहा कि २०१२ में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बसपा अपनी धवि सुधारने के प्रयास में है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के कांग्रेसी अध्यक्ष बूटा सिंह की ताजी रिपोर्ट कहती है मायावती के शासन में दलितों पर उत्पीड़न बढ़ा है। यह रिपोर्ट राजनीति से प्रेरित हो सकती है लेकिन कुछ दिन पहले जौनपुर में एक दलित की प्यास से मौत को क्या कहेंगे? जिस बस्ती की यह घटना है वहां पीने के पानी के लिए एक अदद हैंडपंप नहीं था। दलित की मौत सुन अफसर हैंड पाइप लेकर दौड़े। यह दर्शाता है कि तीन साल में विकास के मुद्दे पर काम कम राजनीति अधिक हुई। नौकरशाही निरंकुश ही नहीं, असंवेदनशील हो गई है, वह जानती है कि काम से नहीं, कुरसी चलती है गणेश परिक्रमा से। यही कारण है कि बिजली, पानी और सड़क जैसे जरूरी काम भी नहीं हो रहे। रही बात अपराधमुक्त राजनीति की तो प्रदेश का भगवान ही मालिक है।

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